Prerana ATC | Fight Trafficking

search

महामारी के बीच रेड-लाइट एरिया में काम करने के कुछ अनुभव

Arjun Singh

Arjun Singh

Project Coordinator

मैं पिछले 13 वर्षों से प्रेरणा से जुड़ा हुआ हूँ. मैं अपनी साथी नीलिमा, वैशाली व शीतल के साथ कमाठीपुरा व फॉल्कलैंड रोड के रेड लाइट एरिया में कार्य करता हूँ. मैं महज 19 साल का था जब मैंने प्रेरणा के साथ जुड़कर कार्य करना शुरू किया था और अपने इतने वर्षों के अनुभव में रेड लाइट एरिया को इतना शांत व स्थिर पहले कभी नहीं देखा था, जितना वे अभी हैं.

वहाँ पर कोई भी हलचल नहीं थी, सड़कें व गलियां खाली थी, दुकानें बंद थी, वाहनों का आना-जाना बंद था, कोई भी महिला ग्राहकों के इंतज़ार में सड़क पर नहीं खड़ी थी, और न महिलाओं को निहारने के लिए गली के कोनों पर एक भी आदमी था. मुझे वहां सिर्फ नाकाबंदी और गश्त करती हुई पुलिस दिख रही थी, जो यह सुनिश्चित कर रही थी कि कोई भी व्यक्ति वेश्यालयों में न प्रवेश कर रहा हो और न ही कोई महिला ग्राहकों की खोज़ में सड़क पर या दरवाजे पर मौजूद  थी. हालांकि इलाके में रहने वालों तक राहत पहुंचाने के लिए कुछ आम नागरिक, एनजीओ या  एमसीजीएम (महानगर पालिका ) और पुलिस के प्रतिनिधि सड़कों पर थे. लॉकडाउन लगने के बाद से प्रेरणा की तात्कालिक प्रतिक्रिया मुंबई व नवी मुंबई के रेड लाइट एरिया के वेश्याव्यावसायगत  बालकों व अकेली महिलाओं तक राहत सामग्री पहुंचाने पर केंद्रित थी. मैं आशा करता हूँ कि मैं आपको इस लेख के जरिए यह बता सकूंगा कि लॉकडाउन के दौरान हमारे कार्य का एक दिन कैसा दिखता है.

 

केंद्र जाने के दौरान हुई मुलाकातें
एक मंगलवार की सुबह मुझे और मेरे एक सहयोगी को कमाठीपुरा स्थित हमारे केंद्र पर चेक-इन मीटिंग के लिए मिलना था. इसके साथ ही हमें इस बात पर भी चर्चा करनी थी कि कमाठीपुरा और फॉल्कलैंड रोड के वेश्यालयों में रहने वाली हरेक महिला से कैसे संपर्क कर सकते हैं और कैसे यह सुनिश्चित कर सकते हैं कि सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पब्लिक डिस्ट्रीब्यूशन सिस्टम) के माध्यम से उन तक मुफ्त राशन कैसे पहुंचे.

वैशाली और मैं एक साथ थे, और कमाठीपुरा स्थित सेंटर की ओर बढ़ रहे थे तभी हमारी मुलाकात कस्तूरी से हुई. उसकी एक आंख नीली और सूझी हुई दिख रही था, वह एकदम से सतर्क हो गई जैसे ही उसने यह देखा कि उसकी नीली आंख पर हमारी नजर पड़ गई है.इससे पहले हम उससे कुछ पूछते कस्तूरी ने बताया  ‘आदमी ने मारा कल शाम को’. उसने आगे कहा कि मेरा आदमी हमें मिली हुई राहत सामग्री को बेच कर शराब खरीदना चाहता था. मैंने उसे मना किया तो उसने मुझे मारा. मुझे इस बात का बुरा लगा कि मेरे बालकों को यह सब देखना पड़ा. उसे जैसे कि यह महसूस हुआ कि हम उसको लेकर चिंतित हैं तो उसने तुरंत कहा, ‘अरे दीदी आप परेशान मत हो, मैं ठीक हो जाऊंगी.’ हम उसकी कैसे मदद कर सकते हैं यह समझने के लिए हमने उससे बात करना जारी रखा. उसने हमसे कहा कि वह मामले को लेकर पुलिस के पास नहीं जाना चाहती है और न ही डॉक्टर से मिलना चाहती है. उसकी यह बात सुनकर हमने उससे कहा कि वह सेंटर आकर भोजन व कुछ राहत सामग्री पा सकती है. उसकी स्थिति देखकर हम अपने आप को असहाय महसूस कर रहे थें लेकिन हमें इस बात की खुशी थी कि हमें एक तरीका मिल गया है जिसके माध्यम से हम बिना कस्तूरी पर दबाव बनाए, उसकी सहायता कर सकते थे.

कमाठीपुरा पहुंचने से पहले हमें रानी और उसकी मां से भी मिलना था. 7 वर्षीय रानी अपनी मां के साथ रहती है जो मूल रूप से पुणे की निवासी है और पिछले 9-10 सालों से वह देह व्यापार से जुड़ी है और रेड लाइट एरिया में रहती है. एक सप्ताह पहले जब रानी अपने और अपनी मां के लिए ‘बन मस्का’ लेने गई थी तो उस दौरान एक नशेड़ी शख्स उसके पास आया और उसे एक कोने में खींचकर उसे गलत तरीके से छूने लगा. रानी जोर से चिल्लाई, जिसे सुनकर आस-पास के लोग जमा हो गए और वह वहां से भाग आई. उसने यह घटना अपने मां के साथ साझा की. उसकी मां शीला इस मामले के बारे में पुलिस को सूचित करना चाहती थी, जिसके लिए उसने वैशाली से संपर्क किया. इसके बाद वैशाली और शीला साथ में पुलिस थाने गए. जहां मामला दर्ज किया गया और एक प्राथिमिकी (एफआईआर) लिखी गई और आरोपी को पकड़ लिया गया. इसी संबंध में आज हम रानी और शीला से मिलने जा रहे थे. हम एक वेश्यालय में प्रवेश किया और देखा कि रानी सो रही है. इसी वेश्यालय में रानी रहती है. शीला ने बताया कि रानी की हालत अच्छी है. हमें देखते ही शीला का सबसे पहला सवाल यह था कि क्या आरोपी अभी भी जेल में है? हमने उसे बताया कि आरोपी अभी भी जेल में है और उसकी बेल के लिए किसी ने आवेदन नहीं दिया है.

हमने शीला को याद दिलाया कि हमारी संस्था की काउंसलर के साथ अगले दिन रानी का ऑनलाइन काउंसलिंग सेशन है. उसने कहा कि उसे याद है और कहा कि हमें परेशान होने की आवश्यकता नहीं है और उसे याद दिलाने की जरूरत नहीं है. हमने वहां से निकलकर सेंटर की ओर जाना शुरू किया. जब तक हम वहां पहुंचे वैशाली लगातार लाइफ स्किल्स एजुकेशन सेशन्स के बारे में बात करती रही, जिनका आयोजन हम हर दूसरे महीने में करते हैं. उसने आगे कहा कि सेशन के दौरान हुई हमारी चर्चाओं ने बालकों में एक बेहतर प्रेजेंस ऑफ माइंड (मौके पर सोचने की क्षमता) को विकसित किया है. साथ ही साथ कैसे इसी का इस्तेमाल करके रानी एक असुरक्षित परिस्थिति से निकल गई. वैशाली ने आगे कहा कि जैसा कि हमने व्यक्तिगत सुरक्षा को लेकर विस्तृत रूप से बात की थी, रानी के लड़ो और निकलो (फाइट एंड फ्लाइट) प्रतिक्रिया ने उसे तत्काल विरोध करने में मदद की. उसने जो सीखा उसका इस्तेमाल डरे व सहमे होने के बावजूद भी कितने बेहतर तरीके से किया है.

 

कोरोना महामारी के बीच एनसीसी में बदलती भूमिका
जब हम कमाठीपुरा सेंटर पहुंचे, तो सेंटर के एक किनारे पर पाँच महिलाएं बैठी हुई थी. हमारे पहुंचते ही उन्होने हमारा अभिवादन किया और कहा कि वह बस हमसे मिलने आई थी और उन्हें हमसे कोई विशेष काम नहीं था. उनमें से एक महिला मुमताज़ ने कहा कि अगली बार जब हम फूड किट का वितरण कर रहे हो तो वह भी राहत सामग्री के वितरण में स्वयंसेवक के रूप में शामिल होना चाहती है. उनमें से सभी ने यह सुझाव किया कि हमें अपने किट में चावल की जगह सूजी, पोहा व कुछ दाल शामिल करना चाहिए. मुमताज ने हमें बताया कि उन्हें कई लोगों से चावल मिला है और एमसीजीएम के पैकेट में भी चावल था. हमने उन्हें अश्वासन दिया कि हम उनके सुझाव पर जरूर विचार करेंगे. राबिया ने मुस्कुराते हुए हमसे कहा कि हो सकेगा तो राकेल (केरोसिन) भी देना.

इसके बाद राबिया ने हमसे पूछा कि क्या वह सेंटर पर कुछ देर के लिए सो सकती है. हम कुछ कह पाते उससे पहले ही उसने कहा कि ‘वेश्यालय में वेश्यालय की मालकिन हमें हर छोटी छोटी बात के लिए परेशान कर रही है क्योंकि हम पैसे नहीं कमा पा रहे हैं. हम उसे मकान का किराया नहीं दे सके हैं और अब अगर हम पंखा भी चलाते हैं तो वह गुस्सा करती है. मैं बस कुछ देर के लिए ही सोउंगी प्लीज मना मत करना.’

 

दुर्गा एक बालिका की माँ है, जिसे हम लगभग पिछले आठ साल से जानते हैं. उसकी बालिका नंदनी जब तीन साल की थी तब से नाइट केयर सेंटर में आ रही है. दुर्गा ने जब हमें देखा तो उसने कहा कि ‘यह मत भूलना कि मैंने अपनी बेटी की देखभाल की जिम्मेदारी प्रेरणा को दी है, अगर मुझे कोरोना हो जाता है. यह पहला मौका नहीं था जब किसी मां से हमसे ऐसा कुछ कहा था. पिछले तीन महीनों में, हमने यह बात कई बार सुनी और यह महसूस किया कि महिलाएं चाहती थी कि हम उन्हें यह सुनिश्चित करें कि हम उनके बालकों की देखभाल करेंगे. कोरोना के कारण उत्पन्न हुई परिस्थितियों के कारण इस प्रकार का डर उनके अंदर पैदा हो रहा था. मैं उसे नंदनी का ध्यान रखने के लिए हमारे द्वारा अपनाई जाने वाली औपचारिक प्रक्रिया के बारे में बताना चाहती थी, लेकिन हमें यह भी पता था कि वह सिर्फ अश्वासन चाहती थी और हमसे सुनना चाहती थी कि हम उसके बालकों के लिए वहां हैं. हमने उनसे कहा कि आप जरूरी एहतियात बरते, आप को कुछ नहीं होगा. हम आपकी और आपकी बालिका की रक्षा और सहायता करेंगे. आप चिंता मत करिए. 

शीतल अपने आउटरीच कार्य से लौटने के बाद हमसे मिली. उसने हमसे बताया कि एक गली में अन्ना (स्थानीय राजनीतिक उम्मीदवार) ने कुछ महिलाओं के साथ एक बैठक का आयोजन किया है और वह उनसे आधार कार्ड जमा करने के लिए कह रहा है. यह काम वह एक संस्था से मदद मांगने के उद्देश्य से कर रहा था, जिससे इन महिलाओं को एक महीने या उससे अधिक समय का किराया देने में मदद मदद मिल सके. शीतल ने आगे बताया कि उसकी मुलाकात एक रेनुका नाम की महिला से हुई है, जिसने उसे बताया कि पिछले महीने हमने जो राशन एक बालक की मां को दिया था उसने वह बेच दिया है.  शीतल ने रेनुका से जानना चाहा कि उसकी माँ ने उस पैसे का क्या किया होगा. रेनूका ने उत्तर में कहा कि उसने केरोसिन खरीदा है. वैशाली यह बात सुनकर तुरंत पलटी और उसने कहा कि अगली बार राहत सामग्री देने वाले हितधारकों से केरोसिन व स्कूल जाने वाले बालकों के लिए डेटा रिचार्ज की भी मांग करेंगे. मैंने तुरंत उनसे कहा कि दो हितधारकों के साथ आज की कॉल के दौरान हमें पता चल जाएगा कि हमारे स्कूल व कॉलेज जाने वाले बालकों की पढ़ाई के लिए डेटा रिचार्ज का प्रस्ताव मंजूर हुआ है या नहीं. वैशाली मे इसके जवाब में कहा मैं आशा करती हूँ प्रस्ताव मंजूर हुआ हो. उसने आगे कहा कि आज की परिस्थिति में विद्यार्थियों के लिए डेटा रिचार्ज बेहद आवश्यक है, पैसों की कमी के कारण गरीब घर के बालक पढ़ाई में पीछे छूट सकते हैं.

 

रेड लाइट एरिया से नाता रखने के कारण आई मुश्किलें
वैशाली ने टीम को जानकारी दी कि फॉल्कलैंड रोड पर कल किए गए आउटरीच वर्क के दौरान वह कुछ महिलाओं से मिली, जिन्होंने उसे बताया कि धंधा शुरू नहीं हुआ है. पुलिस वाले निगरानी कर रहे हैं और ग्राहकों को रेड लाइट एरिया में प्रवेश नहीं करने दे रहे हैं. दो बालकों की माँ रामकी, जो उत्तर प्रदेश से आती है, ने वैशाली से कहा कि कुछ महिलाएं अपने ग्राहकों के साथ फोन के माध्यम से संपर्क में हैं. अगर उनका ग्राहक उन्हें बुलाता है तो वह ग्राहक को फॉल्कलैंड रोड के वेश्यालय में बुलाने की जगह किसी लॉज में कमरा बुक कर लेती हैं. रामकी ने आगे बताया कि उसके नियमित ग्राहक फोन पर ही खट्टी मीठी बातों (कुछ देर के लिए उत्तेजक बात) से खुश थे, जिसके बाद वह उसे पैसे भेजते थे. उनमें से कई महिलाओं ने कहा कि उनके ग्राहक गांव चले गए हैं और जो बचे हैं उनके पास कोई रोजगार नहीं है. उनके नियमित ग्राहकों के पास रोजगार का स्थाई साधन नहीं था, जिसके कारण उन्होंने ने भी आना बंद कर दिया क्योंकि वह महिलाओं को पैसे देने में असमर्थ थे. शीतल ने कहा कि वेश्यालयों में उसके आउटरीच कार्य के दौरान उसने घर वाली और महिलाओं के बीच काफी कहा सुनी देखी. कम आमदनी के कारण सभी निराश थे. जहां धंधा बंद होने के कारण महिलाएं घरवाली को पैसे नहीं दे पा रही थी, वहीं महिलाओं से भी पैसे न मिलने के कारण घरवाली की भी आमदनी नहीं हो रही थी, जिसके कारण उन सभी की सामूहिक आर्थिक हालत उनके लिए परेशानी खड़ी कर रही थी.  उनमें से कई महिलाएं अपने लिए ‘न घर का न घाट का’ मुहावरे का इस्तेमाल करती थी. यहां पर महिलाएं बेहद परेशानी में थी लेकिन वह पैसों के आभाव में घर भी नहीं जा सकती थी. साथ ही साथ उनके गांव में भी परिस्थियां ऐसी ही थी और उन्होने बताया कि अगर वह खाली हाथ जाती हैं तो उन्हें घर में प्रवेश नहीं दिया जाएगा.

रेड लाइट एरिया में पिछले कुछ महीनों से कार्य करने के दौरान हमने यह देखा था कि जहाँ महिलाएं आर्थिक वजहों से कठिनाई झेल रही थी, वहीं इस परिस्थिति के कारण बालक भी गंभीर रूप से प्रभावित हो रहे थे. हमने यह 14 वर्षीय रोहन से मिलने के बाद महसूस किया. वह कक्षा आठवीं का छात्र था. वह हमारे साथ काफी लंबे समय से जुड़ा हुआ था और वह युवा आर्ट्स प्रोजेक्ट के एक क्रॉस कल्चरल कार्यक्रम का हिस्सा बनने के लिए 2019 में कनाडा जाने वाले आठ बालकों में से एक था. हाल ही में उसके गायब होने को लेकर उसकी मां ने प्रेरणा से संपर्क किया था. हमने रोहन को खोजने में मदद की लेकिन अंत में वह खुद से ही वापस आ गया था. नीलिमा से जब हम सेंटर पर मिले तो उसने वैशाली से रोहन के बारे में पूछा. वैशाली ने कहा, वह वापस आ गया है और अभी अपनी माँ के साथ है. वह अभी ठीक है. जब मैंने उससे पूछा कि वह घर छोड़कर क्यों गया था, उसने कहा कि वह अपनी मां से नाराज था और उसे गुस्सा निंयत्रित करने का नियम ‘थोड़ा ब्रेक लो और टहलने के लिए चले जाओ’ का नियम याद आ गया तो वह टहलने चला गया. वह घर छोड़कर टहलने के लिए निकल गया और क्योंकि उसके पास पैसे थे तो उसने चाय और बिस्कुट खरीद लिया. जब उसका गुस्सा शांत हुआ तो वह अपनी मां के पास वापस आ गया. उसने कहा कि वह उससे और उसकी मां से मिली, उनसे हुई चर्चा के दौरान उसने सुरक्षा के नियमों को फिर से दोहराया. इस दौरान रोहन ने उसकी ओर देखा और मुस्कुराते हुए उसे अश्वासन दिया कि उसे चिन्ता करने की जरूरत नहीं है. आगे कहा कि मुझे सब पता है, सब नियम याद हैं.

इसी दौरान हमारी एक सहयोगी छाया ने हमें फोन किया. छाया लॉकडाउन के बाद से घर से ही काम कर रही थी और वह राहत सामाग्रियों के लिए भी को-आर्डिनेट करती थी. छाया ने बताया कि उसने 200 महिलाओं के लिए अपना बाजार से राशन बुक किया है और वह अगले सप्ताह तक डिलीवर हो जाएगा. यह सुनकर हम सब बेहद खुश हुए.

हमें उन महिलाओं की सूची तैयार करने का कार्य खत्म करना था, जिनके पास आधार कार्ड था और वह सार्वजनिक वितरण करने वाली दुकानों से राशन ले सकती थी. कार्य करने के दौरान मैं यह सोच रहा था कि मैं बहुत खुश किस्मत हूँ, जो मुझे मेरा कार्य इन कठिन परिस्थितियों में ऐसी महिलाओं व बच्चों की मदद करने का मौका देता है. प्रेरणा ने जो राहत कार्य किया वह दान नहीं था, वह कार्य यह सुनिश्चित करने के लिए था कि इन महिलाओं का आत्म-सम्मान बरकरार रह सके. कोरोना वायरस ने सभी को प्रभावित किया था, खासकर रेडलाइट एरिया में, लेकिन मुझे खुशी है कि मैं और मेरी टीम ऐसे समय में इन महिलाओं के काम आ सके हैं. मुझे उसी समय एहसास हो गया था कि चाहे कुछ भी हो जाए लेकिन इन बालकों और महिलाओं की भलाई मेरे दिमाग में हमेशा रहेगी. इस विचार के साथ मैं साप्ताहिक चेक-इन कॉल के लिए तैयार हुआ.

मेरा नाम रीहान मिर्जा है और कोरोना महामारी के दौरान रेड लाइट एरिया में एक सोशल वर्कर के रूप में कार्य करने का यह मेरा अनुभव है.

Share on facebook
Share on twitter
Share on linkedin
Share on whatsapp
Share on email
Share on telegram
Share on facebook