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बॉम्बे हाईकोर्ट के स्किन टू स्किन टच फैसले पर सुप्रीम कोर्ट ने नियुक्त किया ‘न्याय मित्र’

तारीख: 6 अगस्त, 2021
स्रोत (Source): अमर उजाला

तस्वीर स्रोत : अमर उजाला

स्थान : महाराष्ट्र

बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर पीठ द्वारा बाल लैंगिक शोषण के मामले में पोस्को एक्ट के तहत एक आरोपी को दोषमुक्त करार दिए जाने के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को वरिष्ठ वकील सिद्धार्थ दवे को न्याय मित्र नियुक्त किया है. हाईकोर्ट ने 19 जनवरी को दोषी को बरी कर दिया था, लेकिन इस विवादित फैसले के बाद सुप्रीम कोर्ट ने 27 जनवरी को इसके अमल पर रोक लगा दी थी. हाईकोर्ट की नागपुर पीठ की जज पुष्पा गनेडीवाल ने इस आधार पर एक दोषी को बरी कर दिया था कित्वचा से त्वचा का संपर्क‘  (स्किन टू स्किन टच) नहीं होने तक लैंगिक हमला नहीं माना जा सकता. महज छूना लैंगिक हमला नहीं माना जा सकता

मामला एक नाबालिग बालिका से जुड़ा था. दोषी व्यक्ति पर बालिका के निजी अंगों को सहलाने
को लेकर लैंगिक हमले का मामला दर्ज किया गया था
. सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस यूयू ललित व जस्टिस अजय रस्तोगी की पीठ ने शुक्रवार को सुनवाई करते हुए कहा कि इस मामले में एक न्याय मित्र की जरूरत है. विवाद की गंभीरता को देखते हुए इस केस में आरोपी को भी समुचित सुनवाई का अवसर मिलना चाहिए. इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने मामले की आगे सुनवाई के लिए 24 अगस्त की तारीख तय की. कोर्ट ने कहा कि हम वरिष्ठ वकील सिद्धार्थ दवे से आग्रह करते हैं कि वे मामले में एमिकस क्यूरी यानी न्याय मित्र बतौर मदद करें. कोर्ट की रजिस्ट्री केस से संबंधित दस्तावेज तत्काल दवे को सुपुर्द करे.

शीर्ष अदालत ने 27 जनवरी को नागपुर पीठ के आदेश पर रोक लगाने के साथ ही महाराष्ट्र सरकार को भी नोटिस जारी किया था. इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल को हाईकोर्ट के 19 जनवरी के आदेश के खिलाफ शीर्ष कोर्ट में अपील दायर करने की इजाजत दी थी. वेणुगोपाल ने हाईकोर्ट के आदेश को सुप्रीम कोर्ट में उठाया था. वेणुगोपाल ने मामला उठाते हुए सुप्रीम कोर्ट से कहा था कि हाईकोर्ट का निर्णय अभूतपूर्व है और यह खतरनाक उदाहरण बन जाएगा

हाईकोर्ट ने कहा था कि चूंकि आरोपी ने बालिका के कपड़े नहीं उतारे थे, इसलिए इसे पोस्को एक्ट के तहत लैंगिक हमला नहीं जा सकता, लेकिन यह भादंवि की धारा 354 के तहत महिला का शील भंग करने का अपराध है. निचली कोर्ट ने 12 साल की बालिका पर लैंगिक हमले के आरोप में 39 साल के एक व्यक्ति को तीन साल की सजा सुनाई थी. हाईकोर्ट ने सत्र न्यायालय के आदेश में बदलाव कर दिया था.     

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