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देशभर में 17,914 बालक सड़कों पर रहते हैं, ऐसे बालक सबसे ज़्यादा महाराष्ट्र में: बाल संरक्षण आयोग

तारीख:  23 फरवरी, 2022

स्रोत (Source): द वायर

तस्वीर स्रोत : द वायर

स्थान : महाराष्ट्र

उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को सड़क पर रहने वाले बालकों के लिए पुनर्वास नीति तैयार करने संबंधी सुझाव लागू करने का सोमवार को निर्देश दिया और कहा कि ये सुझाव केवल कागजों पर नहीं रहने चाहिए. जस्टिस एल. नागेश्वर राव और जस्टिस बीआर गवई की पीठ ने कहा कि अभी तक सड़क पर रहने वाले केवल 17,914 बालकों की जानकारी उपलब्ध कराई गई है, जबकि उनकी अनुमानित संख्या 15-20 लाख है.

इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) ने सुप्रीम कोर्ट को सूचित किया कि देश भर में 17,914 सड़क पर रहने वाले बालक हैं. आयोग ने यह भी कहा कि सड़कों पर रहने वाले बालकों की संख्या सबसे ज्यादा महाराष्ट्र में है.

आयोग द्वारा सोमवार को सुप्रीम कोर्ट में दाखिल हलफनामे के मुताबिक, 17,914 बालक सड़कों पर रहते हैं, जिनमें से 9,530 बालक अपने परिवार के साथ सड़कों पर रहते हैं, 834 बालक अकेले सड़कों पर रहते हैं और 7,550 बालक दिन में सड़कों पर रहते हैं लेकिन रात में झुग्गी-झोपड़ियों में रहने वाले परिवारों में वापस चले जाते हैं. इन 17,914 बालकों में से 10,359 बालक लड़के और 7,554 लड़कियां हैं. एनसीपीसीआर ने सड़कों रहने वाले बालकों की स्थिति पर दायर एक स्वत: संज्ञान याचिका के संबंध में बीते 17 जनवरी को सुप्रीम कोर्ट के आदेश के जवाब में अपना अनुपालन हलफनामा दायर किया है.

यह नवीनतम आंकड़ा बीते 15 फरवरी तक राज्यों द्वारा संकलित किया गया और आयोग द्वारा बनाए गए ‘बाल स्वराज’ पोर्टल पर अपलोड किया गया. इस आंकड़े में उन 2 लाख बालकों को शामिल नहीं किया गया है, जिन्हें इससे पहल ‘सेव द चिल्ड्रन’ संगठन द्वारा एनसीपीसीआर के लिए संकलित किया गया था.

उम्र के हिसाब से अलग-अलग समूहों में पाया गया है कि सड़कों पर रहने वाले बालकों का सबसे बड़ा समूह 7,522 बालकों की उम्र 8-13 साल के बीच है और इसके बाद 4-7 साल की उम्र के 3,954 बालक हैं.

आंकड़ों से पता चलता है कि महाराष्ट्र में सड़क पर रहने वाले बालकों की सबसे बड़ी संख्या 4,952 है, इसके बाद गुजरात में 1,990, तमिलनाडु में 1,703, दिल्ली में 1,653 और मध्य प्रदेश में 1,492 बालक हैं. लेकिन सड़कों पर अकेले रहने वाले बालकों की संख्या सबसे ज्यादा 270 उत्तर प्रदेश में है. आयोग ने कहा है कि सड़क पर रहने वाले बालक सबसे अधिक धार्मिक स्थलों, ट्रैफिक सिग्नलों, औद्योगिक क्षेत्रों, रेलवे स्टेशनों, बस स्टेशनों और पर्यटन स्थलों पर पाए जाते हैं.

एनसीपीसीआर ने 17 राज्यों में 51 धार्मिक स्थलों की भी पहचान की है, जहां बाल भिखारी, बाल श्रम और साथ ही बाल शोषण अधिक प्रचलित है. आयोग ने इन स्थानों का तीसरे पक्ष द्वारा ऑडिट पहले ही शुरू कर दिया है और 27 धार्मिक स्थलों का अध्ययन पहले ही पूरा किया जा चुका है.

विभिन्न आयु समूहों में बड़ी संख्या में बालक सड़कों पर रहते हैं, यह संख्या 14-18 वर्ष के आयु समूहों के बीच कम हो जाती है. आयोग ने कहा है कि संख्या में इस गिरावट की जांच की जानी चाहिए, ताकि यह पता लगाया जा सके कि क्या इन बालकों की अवैध व्यापार में वाहतुक की जा रही है.

आयोग ने आगे कहा है कि कानून द्वारा अनिवार्य बाल एवं किशोर श्रम पुनर्वास कोष अधिकांश राज्यों में नहीं बनाया गया है. शीर्ष अदालत ने दोहराया कि संबंधित प्राधिकारियों को राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) के वेब पोर्टल पर आवश्यक सामग्री को बिना किसी चूक के अद्यतन करना होगा.

न्यायालय ने कहा कि बालकों को बचाना एक अस्थायी काम नहीं होना चाहिए और उनका पुनर्वास सुनिश्चित किया जाना चाहिए.

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