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ऑनलाइन लैंगिक शोषण का शिकार होने वाले कुल बालकों में से 28 फीसदी की उम्र 10 वर्ष से कम

तारीख: 27 फरवरी, 2021
स्रोत (Source): जागरण

तस्वीर स्रोत: Google Image

स्थान: भारत

असल दुनिया के साथ-साथ अब बालकों के लिए इंटरनेट की दुनिया भी असुरक्षित हो गई है. यहां तक कि बालकों को बहला-फुसलाकर वेब कैम से ली गई आपत्तिजनक तस्वीरों और मुद्राओं के आधार पर उनको ब्लैकमेल करने के मामले भी सामने आए हैं. ऐसे मामलों में बालकों को मानसिक रूप से प्रताड़ित कर डराने धमकाने के अलावा पैसे भी वसूले गए, जबकि हमारे देश में आईटी एक्ट के तहत बालकों से जुड़ी आपत्तिजनक सामग्री सर्च करना, उसे देखना और उसका आदान-प्रदान करना अपराध की श्रेणी में आता है. आंकड़े के अनुसार, ऑनलाइन लैंगिक शोषण का शिकार होने वाले कुल बालकों में से 28 फीसद बालकों की उम्र 10 वर्ष से भी कम रही है. ऐसी स्थिति से निपटने के लिए ही कुछ समय पहले केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने बालकों के माता-पिता, स्कूलों, समुदायों, गैर-सरकारी संगठनों और स्थानीय सरकारों के साथ ही पुलिस एवं वकीलों को शामिल कर ऑनलाइन लैंगिक दुर्व्यवहार के विरुद्ध राष्ट्रीय स्तर पर एक संगठन बनाने की घोषणा की थी. यकीनन वर्चुअल दुनिया में बालकों की सुरक्षा के लिहाज से ऐसी व्यापक प्रणाली की आवश्यकता भी है.

 

संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद में पेश की गई एक रिपोर्ट के मुताबिक, साल 2017 में 78 हजार 589 वेबसाइटों पर बालकों का लैंगिक शोषण दिखाने वाली सामग्री उपलब्ध थी. ऐसा कंटेंट परोसने वाली वेबसाइटों की संख्या में वर्ष 2018 में 32 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई थी.

 

नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के अनुसार, सितंबर 2019 से जनवरी 2020 के बीच भारत में सोशल मीडिया पर बालकों का लैंगिक शोषण करने वाली लगभग 25,000 तस्वीरें अपलोड की गई हैं. वहीं, इंडिया चाइल्ड प्रोटेक्शन फंड (एनजीओ) के आंकड़ों के अनुसार, मार्च में लॉकडाउन लगने के बाद चाइल्ड पोर्नोग्राफी सर्च में भारी इजाफा दर्ज किया गया है. भारत में लॉकडाउन के दौरान बालकों के साथ लैंगिक शोषण करने वाली सामग्री व तस्वीरों की खपत 95 फीसदी बढ़ी है.

 

 

 

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