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लैंगिक संबंधों के बाद शादी से सिर्फ इनकार करना धोखाधड़ी नहीं : बॉम्बे हाईकोर्ट

तारीख: 23 दिसंबर, 2021
स्रोत (Source): लाइव लॉ

तस्वीर स्रोत : लाइव लॉ

स्थान : महाराष्ट्र

 

बॉम्बे हाईकोर्ट ने कहा कि सेक्स के लिए शादी के वादे की धोखाधड़ी का कोई सबूत नहीं है तो लंबे रिश्ते के बाद किसी महिला से शादी करने से इनकार करना भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 417 के तहत ‘धोखा’ नहीं माना जाएगा. न्यायमूर्ति अनुजा प्रभुदेसाई ने कहा कि उदाहरण के लिए इस मामले में दंपति ने तीन साल से अधिक समय तक लैंगिक संबंध बनाए. महिला की गवाही से यह संकेत नहीं मिला कि वह शादी के वादे के बारे में गलत धारणा पाले हुए थी. इसके अलावा, शुरू से ही उससे शादी नहीं करने के लिए आदमी के इरादा का भी कोई सबूत नहीं है.

 

“साक्ष्य के अभाव में यह साबित करने के लिए कि अभियोक्ता ने तथ्य की गलत धारणा पर शारीरिक संबंध के लिए सहमति दी थी, जैसा कि आईपीसी की धारा 90 के तहत निर्धारित है, केवल शादी से इनकार करना आईपीसी की धारा 417 के तहत अपराध नहीं होगा.” इस प्रकार देखते हुए अदालत ने निचली अदालत के उस आदेश को रद्द कर दिया जिसमें उसे आईपीसी की धारा 417 के तहत बालिका को धोखा देने के लिए दोषी ठहराया गया था. इस जुर्म में उसे एक साल की जेल की सजा के साथ पांच हजार रुपये का जुर्माने का भी आदेश सुनाया गया था.

 

1996 में दर्ज एक एफआईआर में महिला ने आरोप लगाया कि आरोपी ने शादी के वादे के साथ उसके साथ लैंगिक संबंध बनाए और बाद में उससे शादी करने से इनकार कर दिया. उसके बाद उस व्यक्ति पर आईपीसी की धारा 376 और 417 के तहत बलात्कार और धोखाधड़ी का मामला दर्ज किया गया था. मुकदमे के बाद व्यक्ति को बलात्कार से बरी कर दिया गया, लेकिन धोखाधड़ी के लिए दंडित किया गया. इसके बाद व्यक्ति ने उक्त सजा के खिलाफ हाईकोर्ट में याचिका दायर की. राज्य ने उसके खिलाफ आईपीसी की धारा 376 के लागू नहीं होने का विरोध नहीं किया.

 

अदालत ने महेश्वर तिग्गा बनाम झारखंड राज्य, (2020) 10 एससीसी 108 मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर बहुत भरोसा किया. इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आईपीसी की धारा 90 के तहत तथ्य की गलत धारणा के तहत दी गई सहमति कानून की नजर में सहमति नहीं है, लेकिन तथ्य की गलत धारणा अपराध के साथ निकटता में होनी चाहिए और इसे चार साल की अवधि तक विस्तारित नहीं किया जा सकता. अदालत ने वर्तमान मामले में कहा, “रिकॉर्ड पर मौजूद साक्ष्य इंगित करता है कि अभियोक्ता और आरोपी एक-दूसरे को जानते थे. वे तीन साल से अधिक समय से लैंगिक संबंध में लिप्त थे. पीडब्ल्यू 1-अभियोजन पक्ष के साक्ष्य से यह संकेत नहीं मिलता कि उसने तथ्य की गलत धारणा शादी के वादे परआरोपी के साथ लैंगिक संबंध बनाए थे रिकॉर्ड पर कोई सबूत नहीं है कि संबंध स्थापना के बाद से आरोपी ने उससे शादी करने का इरादा नहीं किया था. “

 

 

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