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फैमिली कोर्ट अपने प्रादेशिक क्षेत्राधिकार के कारण किसी बच्चे को गोद देने के लिए सक्षम प्राधिकारी: केरल हाईकोर्ट

 
तारीख: 12 जनवरी, 2022

स्रोत (Source): लाइव लॉ

तस्वीर स्रोत : लाइव लॉ

स्थान : केरल

केरल हाईकोर्ट ने हाल ही में यह निर्धारित किया कि संबंधित क्षेत्रीय अधिकार क्षेत्र वाले फैमिली कोर्ट को बच्चे को गोद देने का अधिकार है. जस्टिस एम.आर. अनीता ने किशोर न्याय अधिनियम, 2015 के प्रावधानों के तहत बनाए गए 2014 के नियमों और दत्तक ग्रहण विनियम, 2017 के प्रावधानों को देखने के बाद कहा: “उक्त परिस्थिति में जिला न्यायाधीश का यह निष्कर्ष कि अदालत इसके लिए उचित मंच नहीं है. उन्हें बाल कल्याण समिति से संपर्क करना पड़ेगा है, जो अवैध और विकृत है.”

वर्षों से बांझपन का इलाज करवाने के बावजूद अपीलकर्ता दंपत्ति निःसंतान हैं. डॉक्टरों ने पुष्टि की कि उनके लिए जैविक माता-पिता बनना संभव नहीं होगा, दूसरे अपीलकर्ता को गर्भाशय हटाने की सर्जरी से गुजरना पड़ा. प्रतिवादी नंबर दो और तीन पति और पत्नी हैं. उन्होंने अपनी आठ वर्ष की आयु की चौथी बालिका को गोद लेने की इच्छा व्यक्त की. दूसरा प्रतिवादी दूसरे अपीलकर्ता का भाई है. कार्यवाही को वैध बनाने के लिए अपीलकर्ताओं द्वारा जिला न्यायाधीश के समक्ष एक याचिका दायर की गई. हालांकि, इसे इस आधार पर खारिज कर दिया गया कि अदालत के पास गोद देने के मुद्दे पर विचार करने या निर्णय लेने का कोई अधिकार क्षेत्र नहीं है और पक्षकारों को बाल कल्याण समिति से संपर्क करना पड़ा.

इसे चुनौती देते हुए दोनों पक्षों ने हाईकोर्ट का रुख किया. अधिवक्ता आर. रंजीत और एम.टी. अपीलकर्ताओं की ओर से पेश हुए. सुरेश कुमार ने अपना मामला पेश करने के लिए किशोर न्याय (बालकों की देखभाल और संरक्षण) अधिनियम, 2015, किशोर न्याय (बालकों की देखभाल और संरक्षण) नियम, 2014 और दत्तक ग्रहण विनियम, 2017 के कई प्रावधानों की ओर अदालत का ध्यान आकर्षित किया. यह तर्क दिया गया कि द्वितीय अपीलकर्ता की भतीजी होने के कारण बालक 2015 के अधिनियम की धारा 2(52) के तहत परिभाषित ‘रिश्तेदार’ की परिभाषा के अंतर्गत आएगा. यह विनियम 5(7) के अनुसार अधिनियम के तहत निर्धारित आयु सीमा की शर्त को समाप्त करता है.

इसके अलावा, उन्होंने तर्क दिया कि अधिनियम की धारा 2(23) के अनुसार गोद लेने के लिए याचिका दायर करने के लिए फोरम में जिला न्यायालय, परिवार न्यायालय और सिटी सिविल कोर्ट शामिल हैं. प्रतिवादियों का प्रतिनिधित्व अधिवक्ता एन.एन. गिरिजा और लोक अभियोजक शीबा थॉमस ने इस पर कोई आपत्ति नहीं जताई और सहमति पत्र भी दाखिल किया. कोर्ट ने कहा कि कानून के मुताबिक अपीलकर्ता बच्चे को गोद लेने के योग्य हैं. इसके अलावा, वर्तमान में परिवार न्यायालयों को कार्यालय ज्ञापन के अनुसार दत्तक ग्रहण न्यायालय के रूप में नामित किया गया है.

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