Prerana ATC | Fight Trafficking

search

पोकसो में ‘लैंगिक उत्पीड़न’ की परिभाषा को पीड़ित के नज़रिये से भी देखा जाना चाहिए: सुप्रीम कोर्ट

तारीख: 01 अक्टूबर, 2021
स्रोत (Source): द वायर

तस्वीर स्रोत : द वायर

स्थान : नई दिल्ली

सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को कहा कि लैंगिक अपराधों से बालकों के संरक्षण (पोकसो) अधिनियम के तहत बालकों के खिलाफ लैंगिक हमले के अपराध को परिभाषित करने वाले प्रावधान को पीड़ित के दृष्टिकोण से देखा जाना चाहिए और यदि कोई सेक्सुअल इरादा मौजूद है तो अपराध कोत्वचा से त्वचा’ (Skin to Skin Contact) का संपर्क हुए बिना भी अपराध माना जाना चाहिए.  रिपोर्ट के अनुसार, जस्टिस यूयू ललित की अध्यक्षता वाली पीठ नेलैंगिक अपराध करने के इरादेपर जोर देते हुए कहा कि अगर प्रावधान मेंशारीरिक संपर्कशब्द की व्याख्या इस तरह से की जाती है, जहां अपराध तय करने के लिए त्वचा से त्वचा का संपर्क आवश्यक हो, तो इसके नतीजे बेहद खतरनाक होंगे.

इससे पहले अटॉर्नी जनरल और राष्ट्रीय महिला आयोग (एनसीडब्ल्यू) की अलगअलग अपीलों पर सुनवाई कर रहे उच्चतम न्यायालय ने 27 जनवरी को उस आदेश पर रोक लगा दी थी, जिसमें एक व्यक्ति को पोकसो अधिनियम के तहत बरी करते हुए कहा गया था कि बिनात्वचा से त्वचा के संपर्ककेनाबालिग के वक्ष को पकड़ने को लैंगिक हमला नहीं कहा जा सकता है.’

शीर्ष अदालत ने इसके खिलाफ दायर दो अपीलों पर सुनवाई पूरी करते हुए अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है. उल्लेखनीय है कि बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर पीठ की जस्टिस पुष्पा गनेडीवाला ने दो फैसले सुनाए थे, जिसमें कहा गया था कित्वचा से त्वचा के संपर्कके बिना नाबालिग के वक्ष को छूना पोकसो अधिनियम के तहत लैंगिक हमला नहीं कहा जा सकता हैअदालत ने कहा था कि आरोपी ने क्योंकि बिना कपड़े निकाले बालक के वक्ष को छुआ, इसलिए इसे लैंगिक हमला नहीं कहा जा सकता है, लेकिन यह आईपीसी की धारा 354 के तहत एक महिला की गरिमा भंग करने का अपराध है.

जस्टिस यूयू ललित, जस्टिस एस. रवींद्र भट और जस्टिस बेला एम. त्रिवेदी की तीन सदस्यीय पीठ
ने दोनों पक्षों के वकीलों की दलीलों को सुना और उनसे कहा कि वे लिखित कथन भी दाखिल
करें
. इस मामले में न्यायालय फैसला बाद में सुनाएगा. पीठ ने पोकसो अधिनियम की धारा 7 की परिभाषा पर चर्चा की, जो बालकों के खिलाफ लैंगिक उत्पीड़न के अपराध से संबंधित है.

इसका प्रावधान कहता है, ‘जो कोई भी लैंगिक इरादे से बालक की योनि, लिंग, गुदा या स्तन को छूता है या बालक को व्यक्ति या किसी अन्य व्यक्ति की योनि, लिंग, गुदा या स्तन को छूने को कहता या ऐसा करवाता है या सेक्सुअल इरादे से ही कोई ऐसा काम करता है, जिसमें बिना किसी पेनेट्रेशन (शरीर में कुछ प्रवेश करवाए) के बिना शारीरिक संपर्क शामिल है, तो इसे लैंगिक हमला कहा जाएगा.’ पीठ ने उच्च न्यायालय द्वारा की गई व्याख्या पर अपनी असहमति रखते हुए कहा कि इसलिए महत्वपूर्ण बात यही है कि यदि लैंगिक इरादा साबित हो जाता है तो सब कुछ स्पष्ट हो जाएगा. 

द वायर की इस खबर को पढ़ने के लिए यहाँ पर क्लिक करे. 

अन्य महत्वपूर्ण खबरें